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सुहागिन-सुहाग और सुप्रीम कोर्ट की आग

                                               (on individual responsibility of the scribe)

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सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित- 
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)

मेरे प्यारे देश की सुहागिन देवियो
आप सब का अपने-अपने सुहाग के प्रति समर्पण
इस देश की सबसे बड़ी धरोहर है
आपका यही बेमिसाल समर्पण भाव
परिवार की आत्मा है देवियो
पुरुष को यही आत्मा
मर्यादा के पावन बंधन से रखती है बाँधकर
परिवार की सुख-शांति से बढ़कर
नहीं है किसी भी तरह की प्रगतिवादी सोच
परिवार की मर्यादा से बढ़कर
नहीं है किसी संविधान की मर्यादा
परिवार की मर्यादा में संविधान वालों का दखल
परिवार से परिवार की आत्मा को कर रहा है बेदखल।
माननीय सुप्रीम कोर्ट
लड़के को लड़के से
लड़की को लड़की से
विवाह करने की
दे चुका है छूट
यह तो सीधे-सीधे
संविधान की है लूट।
माननीय सुप्रीम कोर्ट
बन बैठा है अनैतिकता का ठेकेदार
कहता है विवाहित नारी
पति के अलावा
बना सकती है सम्बन्ध
शरीर की मिटाने के लिये भूख
पति हो या पत्नी
ऐसी अनैतिक छूट
संविधान की है खुली लूट
परिवार की मर्यादा पर है दिन-दहाड़े डाका।
माननीय सुप्रीम कोर्ट
कैकेयी ने दिलवाया था
श्री राम को चौदह वर्ष का बनवास
आप माननीय महाराज
श्री राम को दिलाना चाहते हो
एक लाख साल का बनवास
किंतु माननीय
आपके बेहूदा खुलेपन को
नहीं होने दिया जाएगा कामयाब।
आप संविधान की
करते-करते ठेकेदारी
कब से हो गए ठेकेदार
आदमी की व्यक्तिगत नैतिकता का
अनैतिकता की खुली छूट देकर आप
स्वस्थ भारतीय परम्पराओं को कर रहे हैं तार-तार
फैला रहे हैं घोर अराजकता बार बार
जिसकी भरपाई सैकड़ो वर्षाे में नहीं हो पाएगी सरकार ।
                                              -इति

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