ये श्रद्धा धनकाम्या क्रव्यादा समासते।
(यह है भारतीय संस्कृति की गहराई) – अथर्ववेद 12/2/51
जो श्रद्धा को छोड़कर तृष्णा (हवस) में फँसे हैं, वे नाश की तैयारी कर रहे हैं।
कन्फ्यूशियस और माओ की सुनो बात सन्तान
मैंने तेरा नाम रखा है माओ का ड्रैगनिस्तान
राक्षसों से भी बदतर है तेरी सोच और खान-पान
कोरोना वायरस के पीछे है कोई तेरी सोच शैतान
ऊपर से पर्दा डालने का तूने किया अन्त तक काम
पता नहीं रसिया जैसा अच्छा देश क्यों नही पाया तुझे पहचान
इटली, स्पेन, फ्रांस, ईरान और अमेरिका में मच गया कोहराम
भारत निकाल देगा तेरे पैदा किए इस वायरस की जान
छोड़ दे तृष्णा (हवस) दुनिया के लिए बन चुका है तू हैवान।
धन्यवाद। सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, देहरादून