– एएमयू शताब्दी समारोह
नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में कहा कि ,आज एएमयू से तालीम लेकर निकले सारे लोग भारत के सर्वश्रेष्ठ स्थानों पर और संस्थानों में ही नहीं बल्कि दुनिया के सैंकड़ों देशों में छाए हुए हैं। मुझे विदेश यात्रा के दौरान अक्सर यहां के Óह्य मिलते हैं जो बहुत गर्व से बताते हैं कि मैं एएमयू से पढ़ा हूं। एएमयू के कैंपस से अपने साथ हंसी-मजाक और शेरो-शायरी का एक अलग अंदाज लेकर आते हैं। वो दुनिया में कहीं भी हों, भारत की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
यही कहते हैं ना आप, पार्टनर्स आपके इस गर्व की वजह भी है। अपने सौ वर्ष के इतिहास में ्ररू ने लाखों जीवन को तराशा है, संवारा है, एक आधुनिक और वैज्ञानिक सोच दी है। समाज के लिए, देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा जगाई है। मैं सभी के नाम लूंगा तो समय शायद बहुत कम पड़ जाएगा। एएमयू की ये पहचान, इस सम्मान का आधार, उसके वो मूल्य रहे हैं जिन पर सर सैयद अहमद खान द्वारा इस संस्थान की स्थापना की गई है। अभी कोरोना के इस संकट के दौरान भी एएमयू ने जिस तरह समाज की मदद की, वो अभूतपूर्व है। हजारों लोगों का मुफ्त टेस्ट करवाना, आइसोलेशन वार्ड बनाना, प्लाज्मा बैंक बनाना और पीएम केयर फंड में एक बड़ी राशि का योगदान देना, समाज के प्रति आपके दायित्वों को पूरा करने की गंभीरता को दिखाता है। अभी कुछ दिन पहले ही मुझे चांसलर डॉ. सैयदना साहब की चि_ी भी मिली है। उन्होंने में भी हर स्तर पर सहयोग देने की बात कही है। देश को सर्वोपरि रखते हुए ऐसे ही संगठित प्रयासों से आज भारत कोरोना जैसी वैश्विक महामारी का सफलता से मुकाबला कर रहा है।
मुझे बहुत सारे लोग बोलते हैं कि अपने-आप में एक शहर की तरह है। अनेको डिपार्टमेंट्स, दर्जनों होस्टल्स, हजारों टीचर, प्रोफेसर्स, लाखों स्टूडेंट्स के बीच एक भी नजर आता है। ्रएएमयू में भी एक तरफ उर्दू पढ़ाई जाती है तो हिन्दी भी, अरबी पढ़ाई जाती है तो यहां संस्कृत की शिक्षा का भी एक सदी पुराना संस्थान है। यहां की लायब्रेरी में कुरान की है तो गीता-रामायण के अनुवाद भी उतने ही सहेज कर रखे गए हैं। ये विविधता ्ररू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की ही नहीं, देश की भी ताकत है। हमें इस शक्ति को न भूलना है न ही न ही इसे कमजोर पडऩे देना है। एएमयू के कैंपस में एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना दिनों-दिन मजबूत होती रहे, हमें मिलकर इसके लिए काम करना है। बीते 100 वर्षों में ्ररू ने दुनिया के कई देशों से भारत के संबंधों को सशक्त करने का भी काम किया है। उर्दू, अरबी और फारसी भाषा पर यहाँ जो रिसर्च होती है, इस्लामिक साहित्य पर जो रिसर्च होती है, वो समूचे इस्लामिक वर्ल्ड के साथ भारत के सांस्कृतिक रिश्तों को नई ऊर्जा देती है। मुझे बताया गया है कि अभी लगभग एक हजार विदेशी स्टूडेंट्स यहाँ पढ़ाई कर रहे हैं। ऐसे में ्ररू की ये भी जिम्मेदारी है कि हमारे देश में जो अच्छा है, जो बेहतरीन है, जो देश की ताकत है, वो देखकर, वो सीखकर, उसकी यादें ले करके ये छात्र अपने प्रदेशों में जाएं। क्योंकि ्ररू में जो भी बातें वो सुनेंगे, देखेंगे, उसके आधार पर वो राष्ट्र के तौर पर भारत की से जोड़ेंगे। इसलिए आपके संस्थान पर एक तरह से दोहरी जिम्मेदारी है।
अपना ह्म्द्गह्यश्चद्गष्ह्ल बढ़ाने की और अपनी बखूबी निभाने की। आपको एक तरफ अपनी यूनिवर्सिटी की को और निखारना है और दूसरी तरफ बिल्डिंग के अपने दायित्व को निरंतर पूरा करना है। मुझे विश्वास है, ्ररू से जुड़ा प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक छात्र-छात्रा, अपने कर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए ही आगे बढ़ेगा। मैं आपको सर सय्यद द्वारा कही गई एक बात की याद दिलाना चाहता हूं। उन्होंने कहा था- अपने देश की चिंता करने वाले का पहला और सबसे बड़ा कर्तव्य है कि वो सभी लोगों के कल्याण के लिए कार्य करे। भले ही लोगों की जाति, मत या मजहब कुछ भी हो।
अपनी इस बात को विस्तार देते हुए सर सय्यद ने एक उदाहरण भी दिया था। उन्होंने कहा था- जिस प्रकार मानव जीवन और उसके अच्छे स्वास्थ्य के लिए शरीर के हर अंग का स्वस्थ रहना जरूरी है, वैसे ही देश की समृद्धि के लिए भी उसका हर स्तर पर विकास होना आवश्यक है।
आज देश भी उस मार्ग पर बढ़ रहा है जहां प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव देश में हो रहे विकास का लाभ मिले। देश आज उस मार्ग पर बढ़ रहा है जहां का प्रत्येक नागरिक, संविधान से मिले अपने अधिकारों को लेकर निश्चिंत रहे, अपने भविष्य को लेकर निश्चिंत रहे। देश आज उस मार्ग पर बढ़ रहा है जहां मजहब की वजह से कोई पीछे न छूटे, सभी को आगे बढऩे के समान अवसर मिलें, सभी अपने सपनें पूरे कर पाएं। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास इसका मूल आधार है। देश की नीयत और नीतियों में यही संकल्प झलकता है। आज देश गरीबों के लिए जो योजनाएँ बना रहा है वो बिना किसी मत मजहब के भेद के हर वर्ग तक पहुँच रही हैं।
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