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जानवरों की तरह भरे हैं राज्य की जेलों में बंदी

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देहरादून (संवाददाता)। जेल की बैरकों में बंदियों को पैर फैलाने की भी जगह बमुश्किल मिल पा रही है। बीस बंदियों की क्षमता वाली सामान्य बैरकों में पहले से ही चालीस से अधिक कैदी ठूंसे गए हैं तो लोकसभा चुनाव के दौरान हुई पुलिसिया कार्रवाई से यह संख्या पचास से भी ऊपर पहुंच गई है। ऐसे में जेल की बैरकों का नजारा कुछ ऐसा ही है जैसा मेले के समय बस अड्डों व रेलवे स्टेशनों का होता है। यह सूरतेहाल देहरादून, हरिद्वार समेत सूबे की तकरीबन सभी जेलों का है। क्षमता से अधिक कैदियों का बोझ ढो रही सूबे की जेलें लोकसभा चुनाव के दौरान हुई पाबंदी और वांछित अपराधियों की ताबड़तोड़ गिरफ्तारी से कराहने लगी हैं। दरअसल, चुनाव को शांतिपूर्ण संपन्न कराने की जद्दोजहद में हुई ताबड़तोड़ कार्रवाइयों के चलते बीते 11 अप्रैल तक जेलों में हर रोज पचास से साठ नए बंदी दाखिल हुए। नतीजा यह हुआ कि इन बंदियों को बैरक आंवटित करने में पसीने छूट गए, जबकि हकीकत यह है कि वर्तमान में जेलों में बंदियों के रखने की कुल क्षमता 3378 के सापेक्ष संख्या पांच हजार के करीब पहुंच चुकी है। आरटीआइ कार्यकर्ता नदीमुद्दीन को सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी का विश्लेषण करने पर सामने आया कि हल्द्वानी, देहरादून व हरिद्वार की जेलों में तो क्षमता से दोगुने अधिक बंदी रखे गए हैं। इससे इन जेलों में सामान्य व्यवस्था बनाए रखने में कारागार प्रशासन को नाकों चने चबाने पड़ जाते हैं। वर्षों पहले स्थापित जेलों की बैरकें बंदियों से ठसाठस हैं। यहां आ रहे नए बंदियों बमुश्किल पांव पसारने की ही जगह मिल पा रही है। हालात यह है कि मौजूदा समय में जेलों में शांति व कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने में कारागार प्रशासन के हाथ-पांव फूले हुए हैं। जेलों में बीस, चालीस व साठ बंदियों की क्षमता के अनुसार बैरकों का निर्माण होता है। पुराने समय में बनी जेलों की बैरकों में कैदियों के सोने बैठने के लिए चारपाई की शक्ल में चबूतरा होता है। सूबे की जेलों में इसी तरह की बैरकें हैं। वर्तमान में कैदियों की संख्या बढऩे पर चबूतरे के नीचे खाली स्थान और रास्ते में भी कैदी बिस्तर लगाकर सोते बैठते हैं। वहीं, उन बैरकों में थोड़ी राहत होती है, जहां चबूतरे के बजाए सपाट फर्श है, यहां क्षमता से तीन गुने से अधिक आ तो जाते हैं, लेकिन उन्हें पैर फैलाने की जगह भी मुश्किल से मिलती है। लोकसभा चुनाव का ऐलान होने के साथ ही पुलिस ने भूमिगत चल रहे अपराधियों की तलाश में जुटने के साथ शांति व कानून व्यवस्था के लिए चुनौती बनने वाले शातिरों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया। राज्य पुलिस के आंकड़ों के अनुसार अब तक फरार चल रहे एक हजार के करीब गैर जमानती वारंटियों को गिरफ्तार कर जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। एनडीपीएस एक्ट में मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में साढ़े तीन सौ से अधिक गिरफ्तारियां हुईं। यह सभी सूबे की अलग-अलग जेलों में रखे गए हैं। इसके अलावा सामान्य दिनों में दर्ज होने वाले मुकदमों और पूर्व में दर्ज मुकदमों के आरोपितों की गिरफ्तारियां भी होती ही रहती हैं, जिसका सीधा जेलों पर पड़ा। राज्य गठन के डेढ़ दशक बाद भी सूबे के पांच जिलों में अब तक कारागार की स्थापना नहीं हो पाई है। इसमें बागेश्वर, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, चंपावत व रुद्रप्रयाग जिले शामिल हैं, जहां पकड़े गए अपराधियों को आसपास के जिलों की जेलों में रखा जाता है।  आइजी जेल कहते हैं कि जेलों में पहले से ही कैदियों की संख्या क्षमता से अधिक है। लोकसभा चुनाव के दौरान संख्या और बढ़ी है। जेलों में उपलब्ध संसाधनों में कैदियों को रखने के साथ जेल मैनुअल के अनुसार उन्हें सुविधाएं भी दी जा रही हैं। 

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