

B. of Journalism
M.A, English & Hindi
सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
भूमाफियाओं का दुस्साहस
यह हँसी मजाक नहीं हक़ीकत है कि सागर गिरी आश्रम 45 ए तेग बहादुर रोड, की लगभग 5 बीगा जमीन को हड़पने की तैयारी हो चुकी है। भू-माफिया फर्जी कागजात तैयार कर सरकारी अमले की मिलीभगत से आश्रम की इस पवित्र भूमि को ठिकाने लगाने की जुगत में जी-जान से जुटे हुए हैं। यह ज़मीन केवल ज़मीन न होकर एक बहुत बड़े सन्त जिन्हें सागर गिरी महाराज के नाम से जाना जाता है-उनकी आत्मा है। यदि इस ज़मीन को नापाक (अभी अज्ञात) भूमाफियाओं ने बेच खाया तो आस-पास के लोग ऐसा आन्दोलन छेड़ देंगे जो जिला-प्रशासन की नाक में दम कर देगा। यह ज़मीन केवल धार्मिक और सामुदायिक कार्यो के लिए ही इस्तेमाल होती रही हैं और होती रहेगी। स्थानीय लोगों को सागर गिरी महाराज की इस तपस्थली पर किसी भूमाफिया का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है। इस लेख के माध्यम से मुख्यमंत्री, क्षेत्र के सासंद और विधायक सहित जिलाधिकारी को यह तथ्य बताया जा रहा है ताकि ये जनप्रतिनिधि और अधिकारी समय रहते कारगर कदम उठाकर इस धार्मिक अचल सम्पत्ति की रक्षा कर पाएं। किन्ही आपत्तिजनक और अज्ञात कारणों के चलते अगर इस दिशा में इन लोगों द्वारा सूचित करने के बावजूद उचित कदम नहीं उठाए जाते तो आने वाले कुछ दिनों में कानून और व्यवस्था का प्रश्न खड़ा हो सकता है।
सन्त सागर गिरी महाराज महाराष्ट्र से पधारे थे और यहाँ तेग बहादुर रोड स्थित भूखंड पर विराजमान हुए। देहरादून के तत्कालीन अग्रणीय लोगों के विशेष निवेदन पर सागर गिरी महाराज यहाँ पधारे थे। इससे पहले वे दूधली के जंगल में कुटिया बनाकर तप किया करते थे। देहरादून के लोग चाहते थे कि ऐसे महान सन्त के चरण देहरादून में पड़ें और देहरादून का उद्धार हो सके। सागर गिरी महाराज ऐसे पहुँचे हुए सन्त थे जो महीनों तक हठयोग में लीन रहते थे और आम लोगों की तरह सोते नहीं थे। कभी-कभी तो इस तपस्थली पर वह महीनों तक किसी को दिव्य दर्शन भी नहीं दे पाते थे। उनकी इस अखंड तपस्या से दूनघाटी के लोग चकित थे। एक समय था कि पूरे इलाके के बड़े-बड़े लोग उनके दर्शन को लालायित रहा करते थे। उपजिलाधिकारी हरस्वरूप पाठक और जिलाधिकारी एपी दीक्षित (भूतपूर्व) ऐसे तमाम भक्तों में शुमार है जो विधिवत उनके दर्शन को आश्रम में आया करते थे। क्या ऐसे साक्षात भगवान स्वरूप सन्त की पुन्य तपस्थली को भूमाफियाओं के हाथों में जाना दिया जाए जो इसे खुर्द-बुर्द कर करोड़ों के वारे-न्यारे करने का ख़्वाब संजोए बैठे हैं।
विदित रहे कि अजबपुर कलाँ परगना इलाके का यह भूखंड 5 बीघा एक बिस्वा का है। मौजूदा समय में इस भूखंड में एक मन्दिर-समूह स्थित है जिसके अन्दर बीचोंबीच श्री श्री 108 सागर गिरी महाराज जी की पुन्य समाधि प्रतिष्ठित है। इस मन्दिर समूह में शिवशंकर, श्री राम , माता दुर्गा, श्री हनुमान जी, श्री गणेश जी सहित राधे-कृष्ण मन्दिर चिरप्रतिष्ठित है-जिनका निर्माण भक्त जनों ने समय-समय पर करवाया है। इस पावन मन्दिर के प्रांगण में स्थानीय लोगों के द्वारा धार्मिक और सामाजिक कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। यह पवित्र स्थल स्थानीय लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है। इस पवित्र मन्दिर समूह के रहते पूरे इलाके में सद्भावना और समरसता का माहौल बना रहता है। स्थानीय लोग इस स्थल को भावनात्मक दृष्टि से सामुदायिक स्थल भी मानते हैं और इस स्थल की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते है। जैसे ही लोगों को कुछ अज्ञात भूमाफियाओं की गिद्ध दृष्टि की भनक पड़ी है-वे सुलग उठे हैं। इस स्थल की रक्षा के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने की तैयारी भी की जा रही है।
गौरतलब है कि सन् 1958 में स्वर्गीय राणा शमशेर बहादुर सिंह जी ने इस भूखंड को डॉक्टर दीनानाथ कोहली से खरीदकर सन्त सागर गिरी महाराज के चरणो में अर्पित कर दी थी। इस भूखंड की रजि0 नं0 बुक संख्या 667 बुक नं0 एक, 537 पेज 4, दिनांक 31 मार्च 1958 है। ऐसा होते ही यह भूखंड सागर गिरी महाराज आश्रम का हो गया। इस आश्रम के सुचारू संचालन के लिए श्री चन्द्र बहादुर सिंह पुत्र शमशेर बहादुर सिंह निवासी दिलकुशा, राजा रोड देहरादून ने 15 नवम्बर 1965 के दिन इसे ट्रस्ट में तब्दील कर दिया जिसके 11 सदस्य मनोनीत किए गए थे। इसके तुरन्त बाद ही कुटियानुमा आश्रम को मन्दिर के रूप में स्थापित किया गया। इस आश्रम ट्रस्ट को 26 नवम्बर 1965 को बाकायदा रजिस्टर कराया गया था। परमसिद्ध परमपरोपकारी परमसन्त सागर गिरी महाराज 15 अप्रैल 1975 को ब्रह्मलीन हो गए थे। उनके ब्रह्मलीन होने के बाद भिन्न-भिन्न धर्मगुरूओं ने आश्रम का संचालन किया और वर्तमान में भी एक बाबा इस आश्रम का संचालन कर रहे है और दो आदरणीय पुजारी विधिवत मन्दिर समूह में पूजा-पाठ नियमित रूप से कर रहे हैं। किन्तु यह पावन भूखंड एवं मन्दिर समूह इस समय कुछ अज्ञात ताकतवर भूमाफियाओं के पन्जे में जाता दिखाई दे रहा है। जो कि मन्दिर में गहरी आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों को कतई मन्जूर नहीं है।
-जय भारत
The National News
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