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दलित दिल्ली सरकार के मर्ज की दवा क्या है

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कहते हो देश का हिरदय
बने हुए हो निष्ठुर-निरदय
चुनी हुई सरकार का ढोंग
लेफ्टिनेंट गवर्नर बना बैठा है राजा जनता क्यों मौन
संविधान की छाँव बैठकर
चुनाव का करते हो स्वांग
मुख्यमंत्री फिर रहा बना बेचारा
गवर्नर बना हुआ केन्द्र सरकार की आँखों का तारा
दिल्ली सरकार के बाँध कर हाथ-पाँव
केन्द्र सरकार चला रही दाँव पर दाँव
ठीक नहीं दिल्ली में लाठी की भाषा
जनता की घायल है आशा
देश पर भारी राजनीति देश से गद्दारी
दिल्ली में लोकतंत्र बना लेफ्टिनेंट गवर्नर की सवारी
यही तो है राजनीतिक गुंडागर्दी सारी।
दुखी दिल से कह रहा बीर
पत्रकारिता ढूँढ रही मलाई-खीर
हिम्मत नहीं किसी में बताए लोकतंत्र की लाचारी
दिल्ली की पत्रकारिता सच और संघर्ष से हारी
इन्हे चाहिएं बैग भर-भर कर एैड
दोस्तो दुखी मन से कह रहा वैरी-बैड
चैनलों पर दहाड़ते हो गुर्राते हो कहते हो खुद को सच की आवाज़
अरे नशा बेचने वाले विज्ञापनों से आ जाओ बाज
पर्दाफाश हो गया तुम सब का नहीं रहा राज
है दम तो दिखाओ दलित दिल्ली सरकार के मर्ज का इलाज।

                              virendra dev gaur

                                 chief-editor

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