शाहीन बाग था साजिश का अड्डा मोदी सरकार के लिए खोदा गया था गड्ढा
भारत तेरे टुकड़े होंगे
इंशा अल्लाह—इंशा अल्लाह—–
ऐसे ज़हरीले बोलों के चलते हैं जब दिल पर नश्तर
आक्रोश मन में आता है भर
खयाल यह कर लेता है घर
संविधान और कानून के रहते
कैसे निकाल सकता है कोई
मुँह से माँ भारती को गाली देते ऐसे स्वर
कहाँ है कानून का डर
कहाँ है संविधान का असर
माँ भारती की पावन धरा पर खेलोगे तुम कब तक देश-विरोधी चौसर।
कोई पाले बैठा है मंसूबे
तोड़ डालेंगे चिकन नेक के सूबे
बचे हुए भारत के करने को टुकड़े-टुकड़े
बेचैन घूम रहे हैं जिहाद के आका और गुर्गे
मजहब के उन्माद में 47 में हुए थे भारत के दो दुकड़े
मजहब के उन्माद में ही 71 में हुए जिहादिस्तान के दो टुकड़े
इस तरह केवल 72 सालों में भारत के हो गए हैं तीन टुकड़े।
47 में हो जाने देते तसल्ली से आर-पार
उधर के हिन्दू इस पार
इधर के मुसलिम उस पार
तो शायद दोनों मुल्कों में कम से कम हो जाती तकरार
वहाँ हिन्दू निपटाए जा रहे हैं चल रहा जोरों से जिहादी कारोबार
यहाँ कट्टर मुसलमानों ने शाहीन बाग वाला छेड़ रखा है जिहाद
शाहीन बाग हैं केवल और केवल इक्कीसवीं सदी का जिहाद
यह जिहाद भारत में फिर छेड़ा जाएगा कई बार
किया जा रहा है देशभक्तों को होशियार
कर्बला और मदीना का उठ जाएगा कभी भी बुखार
टुकड़े-टुकड़े गैंग के हाथ लग चुका है नया जिहादी हथियार
शरजील के देश में बैठे कई साथी परख चुके हैं इसकी धार
जब तक जिहाद को जिहाद कहने से बचोगे तुम मेरे यार
तब तक मात खाते रहोगे इस कमजोरी के रहते बारम्बार।
देश के अन्दर चल रहे जिहाद को
विचार और विरोध जताने का बताया जा रहा है अधिकार
इस तरह संविधान पर अतिक्रमण कर किया जा रहा है दुराचार
व्यस्त सड़क पर औरतों का तीन माह चला कब्जा
संविधान के माथे पर लगा कलंक का धब्ब़ा
देश की साख पर लगाया गया बट्टा
यह औरतों को ढाल बनाकर किया गया था जिहाद
देशभक्तो लोकतंत्र पर की गई इस चढ़ाई को रखना याद।
जब देश की अस्मिता से किया जा रहा था खिलवाड़
जब देशभक्त नौजवानों के दिल में उठा दर्द का गुबार
तब अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा और प्रवेश साहिब सिंह जैसे साहसी लोगों ने किया प्रतिकार
इनके घायल दिलों से निकली थी ललकार
जिसमें घुली हुई थी दर्द से भरी चीत्कार
किन्तु उस दर्द भरी चीत्कार को मिली घिनौनी दुत्कार
इस तरह जिहादियों और जिहाद समर्थकों ने कटघरे में खड़ी कर दी जायज ललकार
यह वामपंथियों और राम-कृष्ण विरोधियों का देशभक्तों पर था जानलेवा वार
टुकड़े-टुकडे़ गैंग के हाथों देशभक्तों की हुई थी हार।
दिल्ली और अलीगढ़ के कुछ विश्व-विद्यालयों में
यदा-कदा उठता ही रहता है देश की अस्मिता के विरुद्ध ज्वार
भारतीय सनातन संस्कृति के खिलाफ यहाँ तेज की जाती है धार
कम्युनिस्टों ने इतिहास में जो भारत के खिलाफ बोया है ज़हर
आने वाली पीढ़ियों पर भी बरपाएगा वह अपना कहर
कम्युनिस्टों ने क्या कभी कहा कि वेद और उपनिषद भी इतिहास का हैं आधार
इन्होंने तो इतिहास के हर छल को दिया है बड़ा बाजार
मक्कार अंग्रेजों के यार मैक्स-मूलर ने कह दिया आर्य सेन्ट्रल एशिया से आए
लपक लिया साम्यवादी इतिहासकारों ने यह कुतर्क गाहे-बगाहे
सेन्ट्रल एशिया कहाँ है जहाँ है वहाँ जाओ
वेद-उपनिषद जैसे वहाँ कुछ प्रमाण तो जुटाओ
यकायक भारत में आकर आर्य हो गए विद्वान और महान
तुम्हारे इस झूठे दावे में नहीं है जरा भी जान
वाह रे लम्पटो तुम्हारी लम्पटता पर हो गए ढेरों अनाड़ी कुर्बान
आर्यों को बाहरी साबित कर भारत की मिटाना चाही तुमने पहचान
दुष्टो! तुम्हारे फर्जी इतिहास की बन्द की जानी चाहिए दुकान।
साम्यवादियों और हरियाली वाली आजादी वालों ने मिलकर
देशभक्तों की काट का तैयार कर लिया है औजार
दिसम्बर से लेकर मार्च तक चार माह इसी औजार ने
दिल्ली और देश में मचाया था कोहराम
क्योंकि कोर्ट में जीते थे राम
कश्मीर में रावण का हुआ था काम तमाम
तीन तलाक की वहशी परम्परा का तहस-नहस हुआ था ताम-झाम
पहली बार किसी सरकार ने मानवता से भरपूर बनाया था नागरिकता कानून
देश में ऐसा लग रहा था भारत में पनप रहा था अखिल भारतीय जूनून
ऐसा शानदार वातावरण उन्हें रास न आया जो थे स्वार्थी और कूप-मंडूक
इसीलिए, तान दी गई भारतीय सरकार पर जिहाद की बन्दूक
देशद्रोहियो, तुम्हारे कुकर्मों की भर चुकी है सन्दूक
निकट भविष्य में होने न पाए हमसे कोई चूक
भारत विरोध के अजेन्ड़ों पर वार किया जाए अचूक।
-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून।