झारखंड। शारदीय नवरात्र के विजयादशमी के दिन देशभर में राक्षस राज रावण का पुतला दहन किया जाता है। लेकिन बाबानगरी देवघर में ऐसा नहीं होता। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ कामनालिंग बाबा वैद्यनाथ की पवित्र नगरी में नवरात्र की विजयादशमी तिथि को रावण दहन की परंपरा ही नहीं रही है।
दरअसल बुराई के प्रतीक जिस रावण का पुतला दहन देशभर में किया जाता है, उसी रावण को देवघर में राजा के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि राक्षस राज रावण के कारण ही आज देवघर को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक कामनालिंग मिला है। अगर रावण नहीं होता तो देवघर में बाबा वैद्यनाथ की स्थापना ही नहीं हो पाती। विश्व में देवघर की अपनी अलग पहचान नहीं होती।
शास्त्र-पुराणों में वर्णित तथ्यों के आधार पर कहा जाता है कि कठोर तप के बाद जब लंकाधिपति रावण भगवान शिव से मनचाहा वर प्राप्त कर उन्हें लंका ले जा रहा था तो देवताओं में खलबली मच गई थी। देवताओं ने मिलकर भगवान शिव को लंका ले जाने से रोकने का उपाय तैयार किया। उसी के तहत दैवीय प्रकोप से रावण को देवघर पहुंचने के बाद लघुशंका का एहसास हुआ और उसकी नजर गड़ेरिया का रूप धारण करने वाले देवता पर पड़ी।
गड़ेरिया को रावण ने शिवलिंग सौंपते हुए उसके लौटने तक कहीं भी नहीं रखने का अनुरोध किया। इसके बाद लघुशंका के लिए चला गया। उसी बीच भगवान रूपी गड़ेरिए ने शिवलिंग को यहां देवी सती के समीप रख दिया। बताते चलें कि देवघर में शिव व सती एक साथ विराजमान हैं। उधर लघुशंका के बाद रावण जब लौटा तो यहां पर शिवलिंग स्थापित पाया।
उसके बाद रावण ने यहां से शिवलिंग ले जाने की काफी कोशिश भी की लेकिन शिवलिंग हिला नहीं। कहा जाता है कि उसके बाद ही रावण ने क्रोधवश अपने अंगुष्ठा से शिवलिंग को दबा दिया था। उसी कारण यहां शिवलिंग धंसा हुआ है। रावण के लघुशंका से बना तालाब भी यहां के हरिलाजोरी नामक स्थान पर होने की बात कही जाती है।घैरा-झूमर में भी जिक्र
रावण का गुणगान यहां के प्रसिद्ध लोक संस्कृति घैरा-झूमर में भी मिलता है। तत्कालीन सरदार पंडा सदुपाध्याय भवप्रीतानंद ओझा विरचित प्रसिद्ध झूमर देघरे बिराजे गौरा साथ बाबा भोलानाथ में भी रावण को राजा बताते हुए उसके प्रति आभार जताते हुए इस बात का जिक्र किया गया है कि उसी रावण के कारण आज बाबा वैद्यनाथ रूपी पारस मणि देवघर को मिले हैं।
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