ऋषिकेश, 7 अप्रैल
डीएस सुरियाल
हाईकोर्ट के जस्टिस रवींद्र मैठाणी की पीठ ने ऋषिकेश के मेयर शंभू पासवान के खिलाफ दायर एक याचिका का निस्तारण करते हुए देहरादून के डीएम को आदेश दिए हैं कि शंभू पासवान के जाति प्रमाण पत्र और उसके चुनाव लड़ने की वैधानिकता को तय करें। डीएम को यह फैसला चार सप्ताह में करना होगा।
हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में दावा किया गया कि पासवान ने चुनाव लड़ने के लिए खुद को अनुसूचित जाति का बताया, जबकि अन्य क्रियाकलापों में वह सामान्य जाति का दर्शाता था। याचिका में मांग की गई थी कि आधार पर शंभू के रिकार्ड की जांच की जाए।
अहम बात यह है कि पासवान उत्तराखंड का मूल निवासी भी नहीं है। जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में फैसला दिया था कि एक राज्य का मूल निवासी जातिगत प्रमाण पत्र के आधार पर दूसरे राज्य में चुनाव या नौकरी हासिल नहीं कर सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि यदि पासवान 1950 से प्रदेश में निवास कर रहा है तो ही उसका दावा बनता है। जबकि कुछ तर्क देते हैं शंभू पासवान तो बिहार से यहां मजदूरी करने आया था और तरक्की कर ठेकेदार बन गया।
जस्टिस मैठाणी ने यह आदेश 3 मार्च को पारित किया था। एक माह हो गया, देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठता है। अब गेंद डीएम के पाले में है।
बता दूं कि संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत, अनुसूचित जातियों की सूची राज्य-विशिष्ट होती है और इसे केवल संसद ही संशोधित कर सकती है। इसलिए उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति का है और वह महाराष्ट्र चला जाता है तो उसे महाराष्ट्र में जातिगत लाभ तभी मिलेंगे जब उसकी जाति महाराष्ट्र की राज्य सूची में भी हो। अन्यथा वह सामान्य श्रेणी में माना जाएगा। पासवान उत्तराखंड की जातियों में शुमार नहीं है।